રવિવાર, 28 ઑગસ્ટ, 2016

होता है।

कभी कभी बेवफासे भी प्यार होता है।
यार चाहे कुछ भी हो, यार होता है॥

इस जहांमें जिस का न होता है खुदा।
इश्क़  ही उसका परवरदिगार होता है॥

हम कहां कहेते है कुछ कहो होठोसे?
कभी कभी आंखोसे इकरार होता है ॥

करते है वो जूठा वादा अलग अंदाजसे।
हमे उस पर भी यार, एतबार होता है॥

नाकाम-ए-
इश्क़ हूआ तो पता चला हमें।
जो न करे इश्क़, वो समजदार होता है॥

दूर हो जाता है जो दिल हमारा तोडकर ।
यार, वही क्युं हमारा दिलदार होता है ?

जंग- ए- इश्क़में वो ही जितता है यारा।
खुद पर जिसको दार- ओ- मदार  होता है।

मरके भी खूली रह गई आंखे नटवरकी।
इस तरहसे भी
इश्क़में ईंतेजार होता है॥


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