સોમવાર, 7 સપ્ટેમ્બર, 2015

हैरतमें रह्ता हुं...

देखा है जबसे  मैने आईना,  हैरतमें रह्ता हुं।
में यहां हुं के वहां?  बडी ग़फ़लतमें रहता हुं॥

में उनको याद तो करता रहता हुं आठो पहर।
वो मुझे भूल जायेंगे, यही दहशतमें रहता हुं॥

एक नजर देखा है उनके कमसीन तनबदनको।
बस,उसी पलसे में उनकी मोहब्बतमें रहता हुं॥

ना ना करके हो गया है जबसे गुनाह- ए-इश्क।
संभालना दोस्त मुझे,  सदा वहशतमें रहता हुं॥

मंजिल मिले न मिले, रास्ता तो है वहां तक।
कदम लडखडाते है,फिरभी सियाह्तमें रहता हुं॥

मेरे अफसाना- ए- इश्कका चर्चा है  गली गली।
ताज़्जुब है दोस्त, हर वक्त रवायतमें रह्ता हुं॥

जबसे सो गया हुं कफ़न तानके अपनी कबरमें।
आप मानो या न मानो यारो,फुरसतमें रह्ता हुं॥

कहेने को तो बहुत कुछ है नटवर, कैसे कह दुं?
आम आदमी हुं इसलिये में शराफतमें रहता हुं॥

(सियाह्त= यात्रा, सफर)

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