રવિવાર, 19 એપ્રિલ, 2015

ज़ुबानीमें...

कुछ भी तो नया नहीं है हमारी कहानीमें ।
जलाकर दिल आग लगाई अश्कके पानीमें॥

अब मांगे तो क्यां मांगे हम आपसे सनम?
एक बार फिर आ जाओ हमारी ज़िंदगानीमें॥

मासूम नजरसे कतल करके चले गये आप।
खांमखां मारे गये हम तो युं ही जवानीमें ॥

दोर नाजुक है  कुछ किनखाबी रिश्तोकी।
तूटनी थी तो वो तूट गई  खिंचा-तानीमें ॥

इश्क नही आंसा, न समज शके हम, न वो।
ना ना करके, कर बेठे इश्क हम नादानीमें॥

होते होते हो गया एक हसीन गुनाह नटवर।
नजम एक अपनी सुनाई हमने तो ज़ुबानीमें॥

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