શનિવાર, 18 જાન્યુઆરી, 2014

दास्तान- ए- जिंदगी..

दास्तान- ए- जिंदगी क्या सुनाये हम जमानेसे?
ज़ख़्म- ए- दिल उभर आये फिर बहार आनेसे॥

रूके रूकेसे हमारे कदम रूकके बार चलते रहे ।
जिंदगी रुक नहीं जाती किसेके युं चले जानेसे॥

हो शके तो यारो हमको आप माफ कर देना ।
अभी अभी ही हम उठकर आये है मयखानेसे॥

अपने आपको ही देखकर हैरान रहेते हे हमभी ।
कई बार हम खुदको मिलते है एक अंजानेसे ॥

कहेना तो बहुत है मगर कैसे कहे हम उनको ?
ज़बां रूक जाती है आते देखकर उनको सामनेसे॥

इश्क़ न होता तो कोई ओर गम तो होनाही था ।
तन्हा तन्हा रहेना था हमे तो किसीभी बहानेसे॥

एकको ढूँढो तो यहां लाख मिल जाते है नटवर ।
ये यही दुनिया है,जहां कई है तेरे जैसे दिवानेसे॥।


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