શનિવાર, 21 ડિસેમ્બર, 2013

गिला नहीं...

ऐसे तो मुझे कोईभी गिला नहीं
बस में कभी
ख़ुदसे मिला नहीं

बहुत संभल संभल कर रोया हुं।
इसलिये ही
ख़त मेरा गीला नहीं

खुदाभी हो गया पथ्थर मंदिरमें।
दर्द-ए-दास्तां सूनकर हिला
नहीं

सोचकर उछालो दिल मेरा सनम।
तूट जायेगा, शीशा है,शिला
नहीं

हमारा इश्कभी एक फूल जैसा है।
मूरझा गया बहारमें, खिला
नहीं

तेरे शबाबकी हि असर है साकी ।
शराबभी इतना तो नशीला
नहीं

हमारा इश्क़ तो इश्क़ है सनम।
आप समजे ये ऐसी लीला नहीं


जोडेसे ना जूडे, तोडेसे ना तूटे॥
बंधन
इश्क़का इतना ढीला नहीं

दिल हमारा कि मानता हि नहीं।
इस दिलसे बडा कोई
हठीला नहीं

लिख कोई ओर नजम नटवर तु।
इससे अच्छा कोई सिलसिला
नहीं

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