શનિવાર, 10 ઑગસ્ટ, 2013

हम न हो...

वो जिनाभी क्या जिना हे जिसमें कोईभी गम न हो।
वो आंखेभी दोस्त,क्या आंखे हे जो कभीभी नम न हो॥

जिदगी हम ऐसी जिना चाहते है ओर मरना भी ऐसे।
जिंदगीभर जिनेका ओर मरनेका कोईभी भरम न हो॥

कहते रहते है सब यहां कि सबसे अनेरी प्रेम सगाई।
ओर कोइ समजता नहिं के प्रेमसे अलग धरम न हो॥

वो शख्सभी किताना बदनसीब होगा ईस जहांमें यारो!
जिसके पास बात दिलकी समजने कोई सनम न हो॥

अगर आप भी नहिं मिलने वाले हो हर युगमें हमसे।
खुदासे में कहुंगा, हे खुदा मेरा अगला जनम न हो॥

सर-ए-राह पर चलते चलते बिछडभी गये तो भी क्या?
गनीमत हे चाहत हमारी, आपकी कभीभी कम न हो॥

कुछ तो एसा कर जाओ नटवर जिते जी इस जहांमें ।
याद करेगी सारी दुनिया जब जहांमें कभी हम न हो॥

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