મંગળવાર, 16 સપ્ટેમ્બર, 2014

होती है...

अब तो न दिन होता है,  न अब रात होती है।
अब तो अश्क बिना ही हमारी आंख रोती है॥

हाथकी इन लकिरोमें बंध करके रखा है नसीब।
किस्मत वैसी है की जो प्यारे है उसे खोती है॥

हमारी आंखोसे नीकले तो वो नमकीन पानी है।
अँसुवन उनकी आंखोसे बरसे तो वह मोती है॥

हम भी है मजबूर इधर, वो रहेती परेशां उधर।
यादमें हमारी वो रोज अश्कके मोती पिरोती है॥

हम ख़ुशनसीब है,  उनकी आसपास जो रहेते है।
तस्वीर हमारी तकियेके नीचे रखकर वो सोती है॥

सिनेसे लगा रखी हमने जो हमें बहुत अज़ीज़ है।
सब छोड गये, साथ हमारे तन्हाई एकलौती है॥

न पूछो यार, जी रहा  कैसे नटवर अपनी जिंदगी।
उनके साथ बिना जिंदगानी जैसे एक पनोति है॥

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