શનિવાર, 14 નવેમ્બર, 2015

तेरे शहरमें||

आ गया अब लौट के एक मस्ताना तेरे शहरमें ।
ढूंढता है दरबदर तुझे तेरा दीवाना तेरे शहरमें॥

चप्पा चप्पा पर अश्कसे नाम लिखा उसने तेरा।
गली गली गाता है अपना अफ़साना तेरे शहरमें॥

जिसे भूलही गई हो एक गुजरे हुए वक्तकी तरह।
वो तुझे भूलने खोजता है कोई बहाना तेरे शहरेमें॥

कहां चले गये वो जाने पहेचाने लोग,  वो बस्ती?
रेंगता रहेता है क्युं हर तरफ वीराना तेरे शहरमें?

गुजरते गुजरते यह जिंदगी तो गुजर ही जाती है।
हम वो हे गुजारा उसने सारा ज़माना तेरे शहरमें।

न मंदिर मिला,न नजर आती है अब वो मस्जिदे।
ओर अब खाली खाली है हर मयख़ाना तेरे शहरमें॥

हर चहेरा पर रहेता है यहां पर एक ओर ही चहेरा।
जाना पहेचाना शख़्सभी लगता अंजाना तेरे शहरमें॥

शायद उसी बहानेसे तेरी मेरी आखरी मुलाकात हो।
अब नाचीज नटवरको तो है मरजाना तेरे शहरमें ॥

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