શનિવાર, 14 નવેમ્બર, 2015

घर नहीं आया...

उमरभर चलते रहे हम भी, हमारा घर नहीं आया।
साया हमारा साथ ही था, हमें नज़र नहीं आया ॥

अब क्या करे गिला शिकवा हम किसीसे यहां ?
सफ़र तमाम हूआ हमारा हम -सफ़र नहीं आया ॥

दिल हमारा हमने कुरबान किया जिस जिस पर।
हाय रे किस्मत,दिल उनका हम पर नहीं आया ॥

वक़्त वक़्त की बात है, वक़्त ही हमे समजाता है।
गुजर गया जो वक़्त,  वो लौट कर नहीं आया ॥

जो नहीं किया है वो हर गुनाह कुबूल किया हमनें।
गनीमत है, कोईभी इल्ज़ाम उसके सर नहीं आया ॥

कई बार ऐसा होता रहा हमारी साथ ज जाने क्युं ।
दस्तक देता हे जो द्वार पर,वो भीतर नहीं आया ।

वो हमे भूल गये तो होगी हमारीभी कोई कमज़ोरी।
इश्क़ करता रहा नटवर, इश्क़-ए-हुनर नहीं आया॥

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