શનિવાર, 6 ડિસેમ્બર, 2014

नहीं...

हम सफ़रमें तो है, मगर हमसफ़र नहीं।
निकल पडे है, जाना कहां हे ख़बर नहीं॥

बस गये है सदाके लिये हमारी नजरमें ।
क्या करे हम?उनकी हम पर नजर नहीं॥

होगी उनकी कोई मजबूरी, वो हमें भूले॥
सीनेमें उनके दिल है, कोई पथ्थर नही॥

हम आंखोसे पीते है तो कुछ असर होगी।
वर्ना युंही लडखडाये ऐसे हमारे डगर नहीं॥

हर तरफ,  हर जगह है बेसुमार आदमी ।
कहीं मिले हमें इंसान ऐसा ये शहर नहीं॥

नाकाम ही होना था जंग-ए-मुहब्बतमें हमे।
गोया नटवरके इश्क़में तो कोई कसर नहीं॥

क्षमा करना यारो॥
हमारी हिन्दी रचनामें वर्तनी दोष होनेकी पूरी संभावना है॥

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