શનિવાર, 24 ઑગસ્ટ, 2013

पराया है....

बहुत अज़ीज़ है हमे मगर पराया है।
कोई ओर नहिं मेरा ख़ुदका साया है॥

यह इश्क़ क्या है कोन समज पाया?
एक छलना है, बडी अजीब माया है॥

तूटे हुए दिलको कुछ तसल्ली मीली।
एक रोते बच्चेको हमने हसाया है॥

न जाऊं में काशी, न जाऊं में काबा।
मेरा खुदा तो हर दिलमें समाया है॥

दर्द-ए-जिगर कुछ बढ गया ओर भी।
अश्क मिलाकार साकीने पिलाया है॥

अंधेरा क्युं हुआ है आज सारे जहांमें?
चराग मेरी यादका किसने बुझाया है॥

जो बात हम खुद नहिं समजे दोस्त।
वो ओरोको हमने शानसे समजाया है।

हम तो कुछ ऐसे वैसे ही रहेंगे नटवर।
जो न किया वादा वो भी निभाया है॥

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