શનિવાર, 9 માર્ચ, 2013

नजरसे.........

बनके आँसू गिर गया में तो उनकी सुरमई नजरसे।
गनीमत है वो आके ले गये कूछ मिट्टी मेरी कबरसे॥

न तो किसीने कि है हमारी कत्ल, न किसीका दोष है।
जीते जी में तो मर गया युं ही यारो,जुदाई के जहरसे॥

सोच समज कर बात करना सबसे ईस जहांमें यारो।
कभी कभी तो लग जाती हे आग एक गलत ख़बरसे॥

सामने जाम था ओर दोस्तो, हम उसे उठाभी न शके।
दूआ करो, जितना हम तरसे हे ईतना न कोई तरसे॥

यह क्या किया खुदा तूने भीगी भीगी मौसममें मेरे साथ?
जो था बादल मेरी छतका किसी ओरकी छत पर बरसे॥

सांस लेनाभी सजासा लगता है,मरना ही रवां लगता है।
यह कौन आके ले गया सारी हवा मेरे बसेबसाये शहरसे?

मिल जायेगा रास्ता सनम, कदमोमें होगी सारी मंझिले।
बस एकबार तय करके निकलो तो सहि तुम अपने घरसे॥

है पास थोडी नजम, भूले बिसरे खयाल, कूछ तूटे सपने।
आप अब न करो कोई ओर नई उम्मीद बरबाद नटवरसे॥

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