શનિવાર, 29 ડિસેમ્બર, 2012

ख़्वाब दीवानेका..

कभी तो होगा सच, एक ख़्वाब ईस दीवानेका।
निकलेगा जनाज़ा एक रोज किसी परवानेका॥

वो है जो समजकर नहीं समजते बात दिलकी।
क्या फायदा फ़साना उन्हे दिलका समजानेका?

चैन कहां मिलता है हमने पूछा एक अजनबीसे।
सोचकर बता दिया पता उसने हमें मयखानेका॥

न जाओ मंदिर, न मस्जिद तो कोई बात नहिं।
ग़नीमत है ढूंढो बहाना रोते बच्चेको हसानेका॥

यह ज़िन्दगी हमारी क्या हे दोस्त क्या कहुं तूझे?
सिलसिला है किसी पर मर मरके जिये जानेका॥

जो फूट फूट कर बहा रहे अश्क हमारी मैयतमें॥
वो ही तो हे सबब हमारे युं बेमोत मर जानेका॥

हमने एक आह भरी तो गुफ़्तगू होने लगी नटवर।
क्या करे हम कोई ख़ुलासा बरबादीके अफ़सानेका?

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