શુક્રવાર, 9 નવેમ્બર, 2012

पसीनेमें..

धडकने लगा है जबसे तेरा नाम मेरे इस सीनेमें।
मजा आने लगा हमें भी सनम, अब तो जीनेमें॥

कभी तो हमे पिला दो मदभरी इन दो आंखोसे।
कुछ मजा नहि आता अब तो पयमानेसे पीनेमें॥

चाहकर भी भूल न पायोगी अब तुम हमे सनम।
यादमें आंसू बहाती रहोगी तुम सावनके महीनेमे॥

हे खुदा तेरा पता दे या आकर कभी मिल हमेंभी।
कभी बसता तु काशी मथुरा कभी बसता मदीनेमें॥

करता है जब जब कडी महेनत नटवर परदेशमें।
वतनकी मिट्टीकी महेक आती है उनके पसीनेमें॥

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